'जितनी दबाओ उतनी भड़कती है सेक्स की आग'




मशहूर दार्शनिक रजनीश यानी कि ओशो के 'सम्भोग से समाधि तक' का दर्शन जल्द ही रूपहले पर्दे पर उतरने वाला है। इसे लेकर आ रहे हैं 'गांधी टू हिटलर' जैसी अर्थपूर्ण फिल्म बना चुके फिल्मकार नलिन सिंह।

ओशो के विचार की पुस्तक से पर्दे तक की यात्रा दिलचस्प होगी। ओशो ने इस किताब में सेक्स से संबंधित विभिन्न पहलूओं पर विस्तृत चर्चा की है। वह बताते हैं कि हम सेक्स इच्छाओं को जितना दबाते हैं, वह उतनी भड़कती जाती हैं। दमन के कारण सेक्‍स की शक्‍ति जगह-जगह से फूट कर गलत रास्‍तों से बहनी शुरू हो जाती है। यही कारण है कि समाज जितना सभ्य होता गया, उतनी वेश्याओं की संख्या बढ़ती गई।

इसमें वेश्याओं के बारे में लिखा है, ''जितना सभ्‍य समाज है, उतनी वेश्‍याएं है। कभी आपने सोचा कि वेश्‍याएं कैसे पैदा हो गयी? किसी आदिवासी गांव में जाकर वेश्‍या खोज सकते हैं आप। कोई कल्‍पना में भी मानने को राज़ी नहीं होगा कि स्‍त्रियां ऐसी भी हो सकती है। जो अपनी इज्‍जत बेचती हों। अपना संभोग बेचती हों। लेकिन सभ्‍य आदमी जितना सभ्‍य होता चला गया। उतनी वेश्‍याएं बढ़ती चली गयी।''

ओशो लिखते हैं कि, ''यह फूलों को खाने की कोशिश शुरू हुई है। आदमी की जिंदगी में कितने विकृत रूप से सेक्‍स ने जगह बनायी है। इसका अगर हम हिसाब लगाने चलेंगे तो हैरान रह जायेंगे कि आदमी को क्‍या हुआ है? इसका जिम्‍मा किस पर, किन लोगों पर।''

उन्होंने लिखा है, ''इसका जिम्‍मा उन लोगों पर है, जिन्‍होंने आदमी को सेक्‍स को समझना नहीं लड़ना सिखाया। जिन्‍होंने सप्रेशन सिखाया है, जिन्‍होंने दमन सिखाया हे। दमन के कारण सेक्‍स की शक्‍ति जगह-जगह से फूट कर गलत रास्‍तों से बहनी शुरू हो गयी है। हमारा सारा समाज रूग्‍ण और पीड़ित हो गया है। इस रूग्ण समाज को अगर बदलना है तो हमें यह स्‍वीकार कर लेना होगा कि कास का आकर्षण है।'' sabhar : bhaskar.com
 
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