गॉड पार्टिकल के बहुत पास पहुंचा मानव



 

दशकों की मशक्कत के बाद मानव सभ्यता का दावा है कि वह उस कण के बहुत पास पहुंच गई है, जिसने इस सृष्टि की उत्पत्ति की है. हिग्स बोसोन यानी गॉड पार्टिकल की तलाश लगभग पूरी हो गई और वैज्ञानिकों का दावा है कि इसका अस्तित्व है.

 
दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला स्विट्जरलैंड के सर्न में चल रहे बरसों के प्रयोग के बाद मंगलवार को दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने दावा किया कि हिग्स बोसोन कण अब पहुंच से दूर नहीं रहा. इस कण के बारे में करीब चार दशक पहले चर्चा शुरू हुई और विज्ञान का दावा है कि इसकी वजह से ही बिग बैंग विस्फोट हुआ, जिसके बाद यह पूरी कायनात बनी. हालांकि वैज्ञानिकों ने जोर देकर कहा कि अभी यह खोज पूरी नहीं हुई है.
इंग्लैंड में लीवरपूल यूनिवर्सिटी के थेमिस बोकॉक ने कहा, "अगर हिग्स की बात सही साबित हो जाती है, तो निश्चित तौर पर यह इस सदी की सबसे बड़ी खोजों में होगा. भौतिक विज्ञानियों ने धरती की रचना के बारे में अहम कड़ी को सुलझा लिया है, जिसका असर हमारे रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ता है."सर्न की महाप्रयोगशालासर्न की महाप्रयोगशाला
अद्भुत नजारा
कई मीटर लंबे हाइड्रॉन कोलाइडर में प्रयोग के बाद सर्न ने सनसनीखेज खुलासा किया. उनकी प्रेस कांफ्रेंस खचाखच भरी थी. सर्न के वैज्ञानिक ओलिवर बुखम्यूलर ने बताया कि दो अलग अलग प्रयोग के नतीजे एक ही दिशा में जा रहे हैं. हालांकि यहीं की महिला वैज्ञानिक फाबियोला जियानोटी ने सतर्कता भरे अंदाज में कहा, "मुझे लगता है कि हिग्स बोसोन यहीं है. लेकिन अभी इस बारे में आखिरी बयान देना थोड़ी जल्दबाजी होगी. अभी और ज्यादा रिसर्च की जरूरत है. अगले कुछ महीने बेहद दिलचस्प होने वाले हैं. मुझे नहीं मालूम कि क्या आने वाला है."
विज्ञान की धारणा है कि ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स के नाम पर रखा गया बोसोन कण ही 13.7 अरब वर्ष पहले बिग बैंग विस्फोट का कारण था और इसकी वजह से आज ब्रह्मांड में जो कुछ है, उनका अपना द्रव्य है. अगर यह बात साबित हो जाती है कि विश्व को इलेक्ट्रोन और फोटोन की परिभाषाएं बदलनी होंगी. स्कूलों में भौतिकी की पढ़ाई बदल जाएगी. लेकिन अगर यह साबित नहीं हो पाता है तो इस सृष्टि का निर्माण फिर से पहेली बन कर रह जाएगा.
महान कामयाबी
पीटर हिग्सपीटर हिग्सविज्ञान में पिछले 60 सालों में इतनी बड़ी कामयाबी नहीं मिली है. सर्न के अंदर दो अलग अलग प्रयोग किए जा रहे हैं. इनका नाम एटलर और सीएमस है. दोनों का लक्ष्य हिग्स कण का पता लगाना है. मौजूदा वैज्ञानिक उपकरणों से इस कण के द्रव्यमान का पता नहीं लग सकता. इसलिए कई किलोमीटर लंबी सुरंगनुमा प्रयोगशाला तैयार की गई है, जिसमें तीन साल से भी ज्यादा समय से प्रयोग चल रहा है. यहां बिग बैंग विस्फोट जैसा माहौल तैयार किया गया है, ताकि इसके रहस्यों को समझा जा सके. इसे महाप्रयोग भी कहा जा रहा है.
अद्भुत बात है कि दोनों ही खोज के प्रमुखों ने दावा किया है कि उनके प्रयोग से एक जैसे नतीजे आ रहे हैं. दोनों इसे 124-125 गीगा इलेक्ट्रोनवोल्ट का बता रहे हैं. लेकिन अभी पूरी तरह बात नहीं बनी है. प्रयोग के दौरान जो कुछ भी निकल कर आया है, वैज्ञानिक भाषा में वह दूसरे स्तर तक को ही पार करता है, जबकि किसी खोज के लिए इसे पांच स्तरों तक पहुंचना जरूरी है. वैज्ञानिक अभी और आंकड़ों की मांग कर रहे हैं. उनका यह भी कहना है कि अगर गॉड पार्टिकल होता भी है, तो यह बहुत जल्दी क्षय हो जाने वाला या दूसरा रूप ले लेने वाला पदार्थ है.
रिपोर्टः रॉयटर्स, एपी/ए जमाल
संपादनः ओ सिंह
sabhar : DW-WORLD.DE

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