बायोलॉजिकल क्लॉक नियम के अनुसार सेक्स की आवश्यकता

 बायोलॉजिकल क्लाक नियम के अनुसार महिला को एक माह में पुरुष की सैक्स आवश्यकता दो बार होती है पहली बार गर्भाशय के एन्डोमैट्रियम में जमे पिछले महीने के अनिषेचित अण्ड और कार्पसल्यूटियम को उखाड़ ने के लिए , गर्भाशय में पैरिस्टालटिक मूवमेंट /क्रमाकुंचन गति दर शुरू आती दौर में बढ़ाकर मासिक धर्म की शुरुआत अच्छी करने के लिए , जिसमें एंडोमेट्रियल लेयर गर्भाश्य से पूरी तरह तरह से उखड़ जाये । ऐसे में माहवारी की शुरुआत से पहले पति की शिद्दत से जरूरत महसूस होती है ।

दोबारा ओव्यूलेशन /अण्डा निक्षेपण के बाद अण्डा निषेचन के लिए /गर्भ धारण करने के लिए अर्द्ध मास १३ से १६ दिन के समय दौरान एक बार फिर से निषेचन के समय पति की शिद्दत से की आवश्यकता महसूस होती है ।

बाकी सैक्स शरीर के बढ़े हुए सैक्स टैम्प्रेचर / शरीर के काम वासना के भड़क से बढ़े / ऊर्जा स्तर को गिराने /नार्मल करने की प्रक्रिया है जिससे शरीर का बढ़ता तापमान मैथुन से वीर्य और रज के निकल जाने पर शरीर में शान्ति ठंडकता महसूस होती है । शरीर की बढ़ी हुई प्रज्या ऊर्जा से / बढ़ा शरीर का तापमान घटने से सामान्य और मन का मैथुन जनित तनाव दबाव कम से सामान्य तक कम हो जाता है शरीर को शकून मिलता है अच्छा लगता है कुछ सीमित समय के लिए ।

यह मैथुन आनन्द सुख समस्त संसार के सुख और आनंद से सर्वोपरि श्रेष्ठ है जो केवल मानव जाति के पुरुष स्त्री को उपलब्ध है पशुओं में केवल नर पशु इसे प्राप्त करते हैं मादा पशुओं में केवल स्तनधारी वर्ग के आर्डर कार्निवोरा दंतीले मांसाहारी और प्राइमेट्स की कुछ ही सौभाग्यशाली मादाएं पर्याप्त /अनुभव करती है । मैंने अतृप्त बंदरिया और अतृप्त कुतिया को यौनानन्द की प्राप्ती के लिए नर से पुनः आग्रह , अग्रसर , प्रेरण करते हुए फिर से जल्दी दोबारा मैथुन को लेकर फिर से अग्रसर करते देखा था ।

यौनानन्द यौनाघर्षण क्रिया द्वारा पुरुष को हर बार वीर्य स्खलन पर प्राप्त होता है परन्तु यह सैक्स आनन्द स्त्रियों के लिए एक सपने जैसा होता है जो कभी तो मिल जाता है तो कभी पुरुष के समय पूर्व स्खलित हो जाने पर नहीं मिल पाता है । लेकिन यदि किसी स्त्री को यह सैक्स आनन्द की अनुभूति जिस पुरुष से से एक बार भी हो जाती है तो वह स्त्री फिर उस पुरुष के सानिध्य के लिए पुलकित रहती है । वह उस यौनानन्द दाता पुरुष के लिए जाति, कुल , गोत्र , परिवार ,देश काल आयु के नियमों को ताक पर रखकर उससे अलग होने के बारे में सोचने विचार विमर्श करने को पसंद नहीं करती है । समाज परिवार से बगावत पर उतारू हो जाती है । वह तो उसी में खो जाना चाहती है । वैसे आज कल शिक्षा के प्रभाव से जब से यौनानन्द के एच्छिक विकल्प आ गये हैं स्त्रीयों की यौनानन्द के लिए पुरुष पर निर्भरता कम हो गयी है ।स्त्रियों ने भी पुरुष उपलब्ध न होने पर समलैंगिकता , हस्तमैथुन , डिडलू खिलोना मैथुन जैसे यौनानन्द के विकल्प ढूंढ लिए हैं ।अब समर्थ समर्द्ध स्त्री यौनानन्द के लिए पुरुष पर पूरी तरह निर्भर नहीं है । जिससे अब हिस्टीरिया जैसा मनोरोग जो अक्सर अधिकतर कुंठित यौनानन्द भावना से पैदा होता था वह कम हो गया https://hi.quora.com

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