योग के इस फायदे पर कभी आपने गौर नहीं किया होगा
स्वामी निरंजनानंद सरस्वती
एक माली के पास एक छोटा-सा जमीन का टुकड़ा है। भूमि बंजर है। वह उसे एक सुंदर बगीचे में तब्दील करना चाहता है। क्या करना होगा? क्या केवल बीज बो कर माली की यह आशा फलीभूत होगी कि एक दिन ये बीज पौधे की शक्ल लेंगे और उन पर फल-फूल लगेंगे?

या फिर उसको पहले भूमि को तैयार करना होगा, मोथे निकालने होंगे, कंकड़-पत्थर निकालने होंगे, भूमि को जोतना होगा और जब भूमि तैयार हो जाए तब बीच बोने होंगे तथा उसकी देखभाल तब तक करनी होगी, जब तक कि उसमें फल-फूल न लगने लग जाए? जब एक माली अपनी पसंद का बगीचा बनाने के लिए इतनी लंबी प्रक्रिया से गुजर सकता है, तो हम बागवानी की इस विचारधारा को अपने जीवन में क्यों नहीं उतार सकते?
यदि आप अपने जीवन रूपी बगीचे के माली बन जाएं तो आपके जीवन की प्रसुप्त क्षमताएं अपने आप जागृत होने लगेंगी। इसलिए कि सारी क्षमताएं हमारे भीतर हैं। उन्हें प्रकट होने के उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा है। हमें अपने आपको यह अवसर प्रदान करना है। हमलोग अपने जीवन में जो भाग-दौड़ करते हैं, उसका प्रयोजन क्या रहता है?
यही न कि हमें समृद्धि मिले, हम अधिक सुरक्षित हों, हम समाज में और नाम कमा सकें, समाज के उत्थान और निर्माण में एक सकारात्मक भूमिका निभा सकें आदि आदि। मनुष्य का जो भी प्रयास, जो भी कर्म होता है, उसके पीछे यही उद्देश्य होता है – नाम, यश, प्रसन्नता, सुख-संपत्ति, समृद्धि और शांति।
जन्म से मृत्यु तक हम इन्हीं की कामना करते हैं। पर इसके कारण हम लोगों की जो मानसिकता बन जाती है, वही हम लोगों के मनोविकास में बाधक सिद्ध होती है। मनुष्य का मनोविकास योग का आधार है। मनोविकास की प्रक्रिया की शिक्षा हमें योग में प्राप्त होती है। इस प्रक्रिया का संबंध हमारे व्यावहारिक, सामाजिक और भौतिक जीवन के साथ है।
हमें अपने मन को एक खेत के रूप में देखना होगा, जहां हम काम कर सकते हैं। योग शुरू से ही यह कहता आया है कि जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए मन पर ध्यान केंद्रित करना होगा। यह हमारी शरीर रूपी गाड़ी का इंजन है। जिस प्रकार एक कार इंजन के बिना नहीं चल सकती, उसकी प्रकार यदि इस जीवन का मार्ग-दर्शक मन न हो तो यह जीवन बेकार हो जाता है।
प्राचीन शास्त्रों के अनुसार मन की क्षमताओं को व्यवस्थित करना तथा उनका विकास योग का लक्ष्य हो जाता है। यदि मन को केंद्रित, प्रेरित और एकाग्र न किया जाए और उसे सकारात्मक न बनाया जाए तो वह नकारात्मक जालों में फंस जाता है। इसलिए जीवन रूपी बगीचे से घास-फूस को निकालना ही योग की प्रक्रिया है।
आधुनिक यौगिक व तांत्रिक पुनर्जागरण के प्रेरणास्रोत संत परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी और विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय व विश्व योगपीठ के परमाचार्य स्वामी निरंजनानंद सरस्वती प्रवचन पर आधारित आलेख।
प्रस्तुति
किशोर कुमार sabhar :http://www.amarujala.com/
या फिर उसको पहले भूमि को तैयार करना होगा, मोथे निकालने होंगे, कंकड़-पत्थर निकालने होंगे, भूमि को जोतना होगा और जब भूमि तैयार हो जाए तब बीच बोने होंगे तथा उसकी देखभाल तब तक करनी होगी, जब तक कि उसमें फल-फूल न लगने लग जाए? जब एक माली अपनी पसंद का बगीचा बनाने के लिए इतनी लंबी प्रक्रिया से गुजर सकता है, तो हम बागवानी की इस विचारधारा को अपने जीवन में क्यों नहीं उतार सकते?
यदि आप अपने जीवन रूपी बगीचे के माली बन जाएं तो आपके जीवन की प्रसुप्त क्षमताएं अपने आप जागृत होने लगेंगी। इसलिए कि सारी क्षमताएं हमारे भीतर हैं। उन्हें प्रकट होने के उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा है। हमें अपने आपको यह अवसर प्रदान करना है। हमलोग अपने जीवन में जो भाग-दौड़ करते हैं, उसका प्रयोजन क्या रहता है?
यही न कि हमें समृद्धि मिले, हम अधिक सुरक्षित हों, हम समाज में और नाम कमा सकें, समाज के उत्थान और निर्माण में एक सकारात्मक भूमिका निभा सकें आदि आदि। मनुष्य का जो भी प्रयास, जो भी कर्म होता है, उसके पीछे यही उद्देश्य होता है – नाम, यश, प्रसन्नता, सुख-संपत्ति, समृद्धि और शांति।
जन्म से मृत्यु तक हम इन्हीं की कामना करते हैं। पर इसके कारण हम लोगों की जो मानसिकता बन जाती है, वही हम लोगों के मनोविकास में बाधक सिद्ध होती है। मनुष्य का मनोविकास योग का आधार है। मनोविकास की प्रक्रिया की शिक्षा हमें योग में प्राप्त होती है। इस प्रक्रिया का संबंध हमारे व्यावहारिक, सामाजिक और भौतिक जीवन के साथ है।
हमें अपने मन को एक खेत के रूप में देखना होगा, जहां हम काम कर सकते हैं। योग शुरू से ही यह कहता आया है कि जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए मन पर ध्यान केंद्रित करना होगा। यह हमारी शरीर रूपी गाड़ी का इंजन है। जिस प्रकार एक कार इंजन के बिना नहीं चल सकती, उसकी प्रकार यदि इस जीवन का मार्ग-दर्शक मन न हो तो यह जीवन बेकार हो जाता है।
प्राचीन शास्त्रों के अनुसार मन की क्षमताओं को व्यवस्थित करना तथा उनका विकास योग का लक्ष्य हो जाता है। यदि मन को केंद्रित, प्रेरित और एकाग्र न किया जाए और उसे सकारात्मक न बनाया जाए तो वह नकारात्मक जालों में फंस जाता है। इसलिए जीवन रूपी बगीचे से घास-फूस को निकालना ही योग की प्रक्रिया है।
आधुनिक यौगिक व तांत्रिक पुनर्जागरण के प्रेरणास्रोत संत परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी और विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय व विश्व योगपीठ के परमाचार्य स्वामी निरंजनानंद सरस्वती प्रवचन पर आधारित आलेख।
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किशोर कुमार sabhar :http://www.amarujala.com/
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