महोबा के सेनापति आल्हा और उनके छोटे भाई ऊदल द्वारा बनवाया गया किला आज भी खजुआ गांव में स्थित है

महोबा के सेनापति आल्हा और उनके छोटे भाई ऊदल द्वारा बनवाया गया किला आज भी खजुआ गांव में स्थित है खजुआ गांव के ग्रमीण द्वारा बताया गया यह किला आल्हा उदल के किले के नाम से जाना जाता है उत्तर की ओर चहारदीवारी में तीन बड़े-बड़े कुएं तैयार किए गए थे, जो हजारों फीट गहरे हैं। ये कुएं आज भी यहां देखे जा सकते हैं। इनमें बड़ी-बड़ी जंजीरें पड़ी हुई हैं। बताया जाता है कि इन कुओं से बगीचे में पानी पहुंचाया जाता था। यहां महोबा के सेनापति आल्हा और उनके छोटे भाई ऊदल द्वारा बनवाया गया किला आज भी खजुआ गांव में स्थित है पश्चिम में एक बड़ा गेट है, जबकि दूसरा गेट खजुहा गांव की ओर है। इन दरवाजों के ऊपर चढ़कर पूरे बागबादशाही का दृश्य देखा जा सकता है। गांव के अंदर चारों ओर दीवारें बनी हुई हैं और बड़े फाटक तैयार किए गए हैं। कहा जाता है कि यहां पर एक बड़ा हॉल हुआ करता था जिसमें घोड़े और सिपाही रहते थे। ​ फतेह पुर जिले के खजुआ कसबे में आल्हा उदल द्वारा बनवाये गए किला मौजूद है जो बाद में औरंगज़ेब के बेटे शाहशुजा के कब्जे में आ गया था शाहशुजा से औरंगज़ेब के कब्जे में आ गया फिर औरंगज़ेब ने इसमें कुछ निर्माण करवाया रहस्यमयी सुरंग’ गांव के ही बृजबिहारी बाजपेयी की मानें तो ये सुरंग कोलकाता से पेशावर तक जाती है। हालांकि, अब इसे बंद करा दिया गया है। जानकार बताते हैं कि उस वक्त यहां पर शाहजहां के बेटे शाहशुजा का राज था। औरंगजेब ने इसे हड़पने को के लिए अनेक बार यहां पर अटैक किया लेकिन पराजित हुआ। इसके बाद 5 जनवरी, 1659 को औरंगजेब ने फिर से यहां पर अटैक किया और शाहशुजा को पराजित कर कब्जा कर लिया। रहस्यमयी सुरंग’ में जो गया वो नहीं आया वापस, सैकड़ों लोग आज भी लापता kile में एक ऐसी रहस्यमयी सुरंग आज भी मौजूद है जहां जाने वाले कभी लौटकर वापस नहीं आये। सुरंग के आसपास रहने वाले लोगों का कहना है कि इस सुरंग को 350 साल पहले मुगल शासक औरंगजेब ने बनवाया था। इसका नाम बागबाद शाही है। फतेहपुर जिले के खजुहा गांव में आज भी ये मौजूद है। आल्हा चन्देल राजा परमर्दिदेव (परमल के रूप में भी जाना जाता है) के एक महान सेनापति थे, जिन्होंने 1182 ई० में पृथ्वीराज चौहान से लड़ाई लड़ी, जो आल्हा-खाण्डबॉल में अमर हो गए ऊदल ने अपनी मातृभूमि की रक्षा हेतु पृथ्वीराज चौहान से युद्ध करते हुए ऊदल वीरगति प्राप्त हुए आल्हा को अपने छोटे भाई की वीरगति की खबर सुनकर अपना अपना आपा खो बैठे और पृथ्वीराज चौहान की सेना पर मौत बनकर टूट पड़े आल्हा के सामने जो आया मारा गया 1 घण्टे के घनघोर युद्ध की के बाद पृथ्वीराज और आल्हा आमने-सामने थे दोनों में भीषण युद्ध हुआ पृथ्वीराज चौहान बुरी तरह घायल हुए आल्हा के गुरु गोरखनाथ के कहने पर आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दिया और बुन्देलखण्ड के महा योद्धा आल्हा ने नाथ पन्थ स्वीकार कर लिया sabhr vikipidia amarujala.com

टिप्पणियाँ